ओशो

मन दो चीजें जानता है, या तो क्रिया और या निद्रा। आप या तो उसे काम करने दो और या फिर वह नींद में चला जाएगा। ध्यान तीसरी दशा हैक्रिया न हो और निद्रा भी न हो, तब ध्यान फलित होगाकठिन से कठिन जो घटना मनुष्य के जीवन में घट सकती , वह ध्यान है। और आप कहते , हम चौबीस घंटे क्यों न करें! आप मजे से करें। लेकिन घडीभर करना मुश्किल है, तो चौबीस घंटे पर आप फैलाएगा कैसे? _एक उपाय है कि आप साक्षी भाव रखें, तो चौबीस घंटे पर फैल सकता है। लेकिन साक्षी भाव आसान नहीं है। और जो आदमी घडीभर ध्यान कर रहा हो, उसके लिए साक्षी भाव भी आसान हो जाएगालेकिन जो आदमी घडीभर ध्यान भी न कर रहा हो, उसके लिए साक्षी भाव भी बहुत कठिन होगा_ अति कठिन है यह ख्याल करना कि मैं देखने वाला हूं। कोशिश करें! घड़ी अपने सामने रख लें। और घड़ी में जो सेकेंड का काटा है, जो चक्कर लगा रहा है, उस सेकेंड के काटे पर ध्यान करें। और इतना खयाल रखें कि मैं देखने वाला हं सिर्फ देख रहा हूं। _ आप हैरान होंगे कि पूरा एक सेकेंड भी आप यह ध्यान नहीं रख सकते। एक सेकेंड में भी कई दफा आप भूल जाएंगे और दूसरी बातें आ जाएंगी। चौबीस घंटा तो बहुत दूर है, एक सेकेंड भी परा का परा आप यह ध्यान नहीं रख सकते कि मैं सिर्फ द्रष्टा हूंइसी बीच आप घड़ी का नाम पढ़ लेंगे। इसी बीच घड़ी में कितना बजा है, यह भी देख लेंगे। घडी में कितनी तारीख है. वह भी दिखाई पड़ जाएगी। इसी बीच बाहर कोई आवाज देगा, वह भी सुनाई पड़ जाएगी। टेलिफोन की घंटी बजेगी, वह भी ख्याल में जाएगी, किसका फोन आ रहा है! अगर कुछ भी बाहर न हो, भीतर कुछ स्मरण आ जाएगाकोई शब्द आ जाएगा। बहुत कछ हो जाएगाएक सेकेंड भी आप सिर्फ साक्षी नहीं रह सकते। तो अपने को धोखा मत दें। घडीभर निकाल ही लें चौबीस घंटे और उसको सिर्फ ध्यान नियोजित कर दें। ही, जब घड़ी ___ में सध जाए वह सुगंध, तो उसे चौबीस घंटे पर फैला दें। जब घड़ी में जल जाए वह दीया, फिर चौबीस घंटे उसको साथ लेकर चलने लगें। फिर अलग बैठने की जरूरत न रह जाएगीअलग से बैठने की जिस दिन जरूरत समाप्त हो जाती है, उसी दिन जानना कि ध्यान उपलब्ध हुआ। अलग से बैठना अभ्यास काल है। वह प्राथमिक चरण है। वह सीखने का वक्त है। इसलिए ध्यान के जानकारों ने कहा है कि जब ध्यान करना व्यर्थ हो जाएतभी समझना कि ध्यान पूरा हुआलेकिन इसको पहले ही मत समझ लेना, कि जब ज्ञानी कहते हैं कि ध्यान करना व्यर्थ हो जाए, तब ध्यान पूरा हुआ, तो हम करें ही क्यों! तो आपके लिए फिर कभी भी कोई यात्रा संभव नहीं हो पाएगी। अच्छा है अगरचौबीस घंटे पर फैलाएं। लेकिन मैं जानता हूं, वह आप कर नहीं सकते। जो आप कर सकते हैं, वह यह है कि आप थोड़ी घडी निकाल लें। एक कोना अलग निकाल लेंस जीवन का। और उसेआप यह आपसे आज नहीं हो सकोगन ध्यान पर ही समर्पित कर दें। और जब आपको आ जाए कला, और आपको पकड़ आ जाए सूत्र, और आप समझ जाएं कि किस क्वालिटी, किस गण को ध्यान कहते हैं। और फिर उस गुण को आप चौबीस घट याद रखने लगे, स्मरण रखने लगें, उठते-बैठते उसको सम्हालते रहें। जैसे किसी को कोई कीमती हीरा मिल जाए। वह दिनभर सब काम करे, बार-बार खीसे में हाथ डालकर टटोल ले कि हीरा वहां है? खो तो नहीं गया! कुछ भी करे, बात करे, चीत करे, रास्ते पर चले, लेकिन ध्यान उसका . हीरे में लगा रहे। कबीर ने कहा है कि जैसे स्त्रियां नदी से पानी भरकर घड़े को सिर पर रखकर लौटती हैं, तो गाव की स्त्रियां हाथ भी नहीं लगाती, सिर पर घड़े को सम्हाल लेती हैं। गपशप करती, बात करती, गीत गाती लौट आती हैंतो कबीर ने कहा है कि यद्यपि . प्रत्यक्ष रूप से वे कोई भी ध्यान . घड़े को नहीं देतीं, लेकिन भीतर ध्यान घड़े पर ही लगा रहता हैगीत भी चलता है। बात भी चलती है। चर्चा भी चलती है। हंसती भी हैं। रास्ता भी पार करती हैं। लेकिन भीतर सूक्ष्म ध्यान घड़े पर लगा रहता है और घड़े को वे सम्हाले रखती हैं__जिस दिन ऐसी कला का ख्याल आ जाए, तो फिर आप कुछ भी करें, ध्यान पर आपका काम भीतर चलता रहेगा। लेकिन यह आपसे आज नहीं हो सकेगा।