घुँघरू टूट गए

भगवान आपसे संन्यास लेने के बाद मेरे अंग-अंग से नत्य फट रहा है किसी अज्ञात कवि का यह गीत आपको देख कर रोम-रोम में गंजने लगता है- मोहे आई न जग से लाज मैं इतने जोर से नाची आज कि घुघरू टूट गए। कुछ मुझमें नया जोबन भी कछ प्यार का पागलपन भी जब लिया तुम्हारा नाम सा लचका पांव कि धुंघरू टूट गए कहती है मेरी हर अंगड़ाई मैं पिया की नींद चुरा लाई मुझे अंग मिले परवानों के मुझे पंख मिले अरमानों के मैं बन के गई थी चोर कि मेरी पायल थी कमजोर कि घुघरू टूट गए। यह नृत्य सदा-सदा बना रहे, ऐसा आशीष चाहती हूं भगवान चंद्रकांता भारती! यह घटना शुरू हो जाए, तो फिर मिटता नहीं। यह बीज फूटना शुरू हो जाए, तो फिर रुकता नहीं। असली कठिनाई बीज के टने की है। एक दफा बीज टूटा कि फिर विराट वृक्ष होगा- इसी घटना की तो चर्चा शतपथ ब्राह्मण का सूत्र, योगवासिष्ठ का श्लोक, इस नृत्य क लिए हो तो इशारे हो मोह आई न जग से लाज में इतने जोर से नाची आज कि घुघरू टूट गए। टूट ही जाएग घुघरू, क्योंकि यह नाच सामा नहीं जानता, अवरोध नहीं जानता। यह कोई कंजूस का नृत्य नहीं है। यह कोई सम्हल-सम्हल कर नाचने की बात नहीं है। यह न आंगन देखे कि टेढ़ा है, कि तिरछा है न यह ढंग देखे न यह कोई नृत्य के शास्त्र का हिसाब रखे कि भरत नाटयम है, कि कथकली है। यहां सब शास्त्र टूट जाते हैं यहां सब नियम टूट जाते हैं मोहे आई न जग से लाज मैं इतने जोर से नाची आज कि घुघरू टूट गए। टूट ही जाने चाहिए घुघरू। घुँघरूओं को बचा-बचा कर जो नाचेगा, वह क्या खाक नाचेगा! वह तो धुंघरुओं को बचाने में ही लगा रहेगा। जो जग की लाज का हिसाब रखेगा. वह क्या खाक नाचेगा! उसके नाच में तो अहंकार बना ही रहेगा। और नाच भी क्या कोई छोटी-मोटी घटना है! बाढ़ है। जब आती है, तो सब बहा ले जाती है। चर्चा मोहे आई न जग से लाज मैं इतने जोर से नाची आज कि धुंघरू टूट गए। किसी  कुछ मुझमें नया जोबन भी है. एक ..होना ही चाहिए। आंख नई होती है, तो सब नया हो जाता है। कुछ मुझमें नया जोबन भी है  कुछ प्यार का पागलपन भी है होना ही चाहिए। प्रेम फिर सक्रिय ध्यान करना फिर क्रिया कर रहे हैं और मान लीजिए हो और पगलपन न हो असंभव। हां. पागलपन हो सकता है और प्रेम पंखडियों न हो, यह बात बनती हैलेकिन प्रेम हो और पागलपन न हो. यह बात नहीं बनती बहुत हैं पागल, जिनके जीवन में प्रेम नहीं। लेकिन ऐसा एक भी प्रेमी नहीं हुआ. जिसके जीवन में पागलपन जिसने न हो कुछ मुझ में नया जोबन भी है कछ प्यार का पागलपन भी मगर है कियाजब लिया तुम्हारा नाम कुछ ऐसा लचका पांव कि घुघरू टूट गए। टूट ही जाने चाहिए। चंद्रकांता, बिलकुल ठीक हो रहा है। रास्ते पर आ गई! यूं तो लोग कहेंगे, भटक गई पांव लचक गया! मगर मैं कहूंगा कि पांव क्या लचका, पंख लग गए। दिया कहती है मेरी हर अंगड़ाई मैं पिया की नींद चुरा लाई भोली मुझे अंग मिले परवानों के मझे पंख मिले अरमानों के मैंने मैं बन के गई थी चोर कि मेरी पायल थी कमजोर.. यह काम ही चोरी का है! इसलिए तो हमने भगवान को एक नाम दिया, हरि! भगवान के रख बहुत से नाम हमने दिए। इस देश में जितने नाम हमने भगवान के दिए, दुनिया के किसी देश ने नहीं दिए। पूरा एक शास्त्र ही है, विष्णु सहस्रनाम। उसमें सिर्फ नामों का ही उल्लेख है। भगवान के हजार नाम। और हजार तो केवल प्रतीक है। हजार प्रतीक है अनंत का। इसलिए तो कहते हैं, जब समाधि लगती है, तो सहस्रदल कमल, हजार पंखडियों वाला कमल खिलता है हजार प्रतीक है अनंत का। उसमें सभी नाम प्यारे हैं। एक नाम तो बहत अदभत है। नाम है ॐ संन्यासकते नमःभगवान का एक नाम, वह जिसने संन्यास को पैदा किया। क्या गजब का नाम है! तुमने सुना, संसार को पैदा किया। मगर उसने संन्यास को भी पैदा किया। उससे भी गजब का नाम है, हरि! हरि का अर्थ होता है चोर, हरण कर ले जो। चोर है भगवान! माखनचोर ही नहीं कैसे आहिस्ते से हृदय को चुरा ले जाता है, पता ही नहीं चलता! अभी कुछ दिन पहले एक जर्मन सुंदर युवती ने संन्यास लिया। उसे मैंने नाम दिया, हरिदासी। उसको नाम समझा रहा थाबहुत भोली-भाली लड़की थी। उसे मैं नाम समझा रहा था, और जब मैंने उसे कहा कि भगवान चपचाप हृदय चरा लेता है. मतलब है हरि का। सो उसने कहा, हाय! और अपने हृदय पर हाथ रखा। मैंने कहा. अब बेकार रख रही है तू, गया! अब कहां! वहां कभी था। उससे मैंने पूछा, अब कितने दिन रहेगी? उसने कहा, अब क्या कहूं! अब मुझे खुद ही पता नहीं। अब सवाल यह है कि जाऊंगी कैसे! अगर हृदय गया, तो सब गया। तू ठीक ही आई चंद्रकांता! यही आने का ढंग है। मैं बन के गई थी चोर कि मेरी पायल थी कमजोर कि घुघरू टूट गएचोर तो बन कर जाना पड़ता है। परमात्मा को भी तुम्हारे भीतर चोर बन कर जाना पड़ता है और तमको भी परमात्मा के भीतर चोर बन कर जाना पड़ता है। मगर किकितने ही सम्हल कर जाओ, धुंघरू बज जाते हैंबज ही नहीं जाते, टूट भी जाते हैं! शोरगुल हो जाता है। बात जग-जाहिर हो जाती है। कितने ही आहिस्ता जाओ, कितने ही चुपचाप जाओ, कितना ही छुपाओ, छुपाए भी यह बात छुपती नहीं। चंद्रकांता! ठीक हो रहा हैपैर लचक गया, घुघरू टूट गए, पंख लग गए अरमानों को-तू चल पड़ी मार्ग पर। आंख निर्मल होती जाएगी। अतीत खो जाएगा, भविष्य खो जाएगा, यह वर्तमान का अपूर्व क्षण ही रह जाएगा। और उसी क्षण-अतीत जहां नहीं, भविष्य जहां नहीं-तू , जल्दी ही जाएगी। यह मैं भाव भी टूट जाएगा। और जहां मैं गया, वहां परमात्मा है। जब तक मैं है, तब तक परमात्मा नहीं और जब मैं नहीं है, तब परमात्मा है।