ओशो

हमें किसी से प्रेम है या मोह है, यह कैसे जाना जा सकता है?


प्रेम हो तो प्रश्न उठेगा ही नहीं। प्रश्न उठता है तो मोह ही होगा। जैसे कोई पूछे कि प्रकाश है या अंधेरा है, हम कैसे जानें? अगर तुम्हारे पास आंखें हैं तो यह प्रश्न उठेगा ही नहीं। और अगर तुम्हारे पास आंखें नहीं हैं, तो ही यह प्रश्न उठ सकता है। अंधा ही पूछ सकता है कि प्रकाश है या अंधेरा? दिन है या रात? अंधे को पूछना ही पड़ेगा। अंधे के पास अपनी आंख नहीं हैय उसे दूसरों की आंखों पर निर्भर रहना पड़ता है।
प्रेम तो हृदय की आंख है
जो आदमी अहंकार के साथ जीता है, आत्मा के साथ नहीं, वह हमेशा चिंतित रहेगा, कौन क्या कह रहा है! निंदा कौन कर रहा है? स्तुति कौन कर रहा है? क्योंकि उसका सारा व्यक्तित्व इसी पर निर्भर है, दूसरों पर। दूसरे क्या कह रहे हैं?
लेकिन जो व्यक्ति भक्त है, साधक है, प्रभु की खोज में लगा है, आत्मा की तरफ चल रहा है, उसके तो पहले कदम पर ही वह इसकी फिक्र छोड़ देता है कि दूसरे क्या कह रहे हैं। वह इसकी फिक्र करता है कि मैं क्या हूं वह इसकी फिक्र नहीं करता कि लोग क्या कह रहे हैं।
लोग कुछ भी कह रहे हों, मैं क्या हूं? यह उसकी चिंता है। यह उसकी खोज है कि मैं खोज लूं आविष्कृत कर लूं कि मैं कौन हूं। दूसरों के कहने से क्या होगा? क्या मूल्य है दूसरों के कहने का? कृष्ण कहते हैं, निंदा-स्तुति को समान जो समझता है।
वही समान समझ सकता है, जो दूसरों के मंतव्य से अपने को दूर हटा रहा है। और जो इस बात की खोज में लगा है कि मैं कौन हूं। लोगों की धारणा नहीं, मेरा अस्तित्व क्या है। वह सम हो जाएगा। वह अपने आप सम हो जाएगा। उसके लिए लोगों की स्तुति भी व्यर्थ है, उसके लिए उनकी निंदा भी व्यर्थ है। वह तो बल्कि चकित होगा कि लोग मुझमें इतने क्यों उत्सुक हैं! इतनी उत्सुकता वे अपने में लें, तो उनके जीवन में कुछ घटित हो जाए, जितनी उत्सुकता वे मुझमें ले रहे हैं!
आपको ख्याल है कि आप दूसरों में कितनी उत्सुकता लेते हैं! इतनी उत्सुकता काश आपने अपने में ली होती, तो आज आप कहीं होते। आप कुछ होते। आपके जीवन में कोई नया द्वार खुल गया होता। इतनी ही उत्सुकता से तो आप प्रभु को पा सकते थे।
लेकिन आपकी उत्सुकता दूसरों में लगी है! सुबह उठकर गीता पर पहले ध्यान नहीं जाताय पहला ध्यान अखबार पर जाता है। दूसरों की फिक्र है। वे क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं! पड़ोसी आपके बाबत क्या कह रहे हैं!
कौन क्या कह रहा है आपके बाबत, इसको इकट्ठा करके क्या होगा? मरते वक्त सब हिसाब भी कर लिया और किताब में सब लिख भी डाला कि कौन ने क्या कहा, फिर क्या होगा? मौत आपको जांचेगी, आपके हिसाब-किताब को नहीं।