‘प्रेम एक उपहार है’

'प्रेम एक उपहार है'


तुम्हें इसकी फिक्र करनी ही नहीं चाहिए कि वह कल वहां तुम्हारा स्वागत करने के लिए होगा अथवा नहीं क्योंकि एक प्रेमी तो अपना प्रेम वृक्षों और चट्टानों को भी दे सकता है एक प्रेमी तो उसे आकाश की शून्यता को भी दे सकता है एक प्रेमी तो बस खिल सकता है और अपनी सुवास, यदि वहां लेने को कोई भी न हो, तो उसे हवाओं के द्वारा चारों ओर बिखेर सकता है। जरा खयाल करें बुद्ध, बोधि वृक्ष के नीचे बैठे हुए हैं, बिलकुल अकेले ऐसा नहीं कि वहां कोई उसे ग्रहण कर रहा है, लेकिन उसे ग्रहण करने के लिए परमात्मा या अस्तित्व वहां हमेशा ही रहता है, अपने कई रूपों में, और कई तरीकों से वह उसे ग्रहण करता है वासना एक लोभ है, वासना एक बंधन है, वासना में परिग्रह है। प्रेम को किसी पर अधिकार या नियंत्रण करने की जरूरत नहीं है, प्रेम कोई आशक्ति जानता ही नहीं, क्योंकि प्रेम, लोभ नहीं है प्रेम एक उपहार है यह एक सहभागिता है तुमने कुछ पाया है, तुम्हारा हृदय भरा हुआ है, तुम्हारे फल पक गए हैं। तुम्हारी तीव्र उत्कंठा है कि कोई व्यक्ति आए और उसमें सहयोगी बने यह देना बेशर्त है, यदि कोई सहभागी नहीं भी बनता है, तो भी कोई बात नहीं लेकिन तुम इतने अधिक भरे हुए हो कि तुम निर्भर होना चाहते हो जैसे बादल, जल से भरे होते हैं, और वे बरसते हैं। कभी वे जंगल में, कभी वे पहाड़ पर और कभी रेगिस्तान में जल बरसाते हैं, लेकिन वे वर्षा अवश्य करते हैं यह बात, कि उन्होंने जल कहां बरसाया, असंगत है वे इतने अधिक भरे हुए हैं कि उन्हें तो बरसना ही हैं। एक प्रेमी, प्रेम से इतना भरा हुए होता है, कि वह एक बादल बन जाता है, वह प्रेम जल से भरा हुआ होता है हो उसे बरसना ही होता है। उसका बरसना सहज और स्वाभाविक है...