मेरे शब्दों से मत तृप्त होना

मेरे शब्द तुम्हें प्यारे लगें तो तुम उन्हें संगृहीत करोगे प्यारे लगें तो सम्हालकर रखोगे संजोकर रखोगे मस्तिष्क की मंजूषा में। बहुमूल्य हैं ताले डालकर रखोगे। इससे कुछ भी न होगा। एक नए तरह का पांडित्य पैदा हो जाएगा। तुम जैसे थे वैसे के वैसे रह जाओगे। घट आईएसावन न आया । घटा आई और हवाएं उड़ा ले गई बदली को तुम रूखे थे रूखे रह गए। अमृत बरसना चाहिए। और अमृत उन्हीं पर बरसता है जिनके हृदय ध्यान की पात्रता को पैदा कर लेते हैं। शब्दों से मत तृप्त होना। ईश्वर शब्द ईश्वर नहीं है और न ध्यान शब्द ध्यान है न प्रेम शब्द प्रेम है। मगर शब्द बड़ी भांति पैरा करता हैं। हम शब्दों में जीते हैं।