‘ओशोवाणी’

वो तुम न थे, वो हम न थे
वो क्या वजह थी प्यार की
लुटी जहां पे बेवजह
पालकी बहार की।
यह कौन सा मुकाम है!
फलक नहीं, जमीं नहीं
कि शब नहीं, सहर नहीं
कि गम नहीं, खुशी नहीं
कहा यह लेकर आ गई
हवा तेरे दयार की!
अगर तुम ऐसे चुप होकर बैठ गए अनेकाग्र हो कर बैठ गए तो एक दिन पाओगे यह कौन सा मुकाम है!
फलक नहीं, जमीं नहीं
कि शब नहीं, सहर नहीं
कि गम नहीं, खुशी नहीं
कहां यह लेकर आ गई
हवा तेरे दयार की!
तुम्हीं थे मेरे रहनुमा
तुम्हीं थे मेरे हमसफर
तुम्हीं थे मेरी रोशनी
तुम्हीं ने मुझको दी नजर
बिना तुम्हारे जिंदगी
शमा है एक मजार की!


तुम छोड़ दो अपने को परमात्मा के हाथों में। निश्चित कुछ बिखरेगा। जो बिखरेगा वह बिखरने ही के लिए है, बिखरना ही चाहिए। वह बिखरे, यही शुभ है। और कुछ सम्हलेगा। जो सम्हलना चाहिए, वही सम्हलेगा।
अभी गलत तो सम्हला है, सही सोया है। गलत को जाने दो, ताकि सही जाग सके। और सही तभी जागता है जब गलत हट जाए। असार को असार की तरह देख लेने में सार का जन्म है। असत्य को असत्य की तरह पहचान लेने में सत्य की पहली किरण है।