प्रेम

प्रेम अच्छा है


अच्छा तो है, लेकिन तुम्हें पंख देने के लिए पर्याप्त नहीं है। उसके लिए मित्रता चाहिए, और प्रेम उसकी इजाजत नहीं देता। तथाकथित प्रेम मित्रता के बहुत विरुद्ध है। वह मित्रता से बहुत डरता है, क्योंकि जो भी ऊँचा होता है वह खतरनाक होता है, और मित्रता ऊंची है।
जब किसी पुरूष या स्त्री की मित्रता से खुशी प्राप्त होती है तो पहली बार मालूम होता है कि प्रेम तो धोखा है। तब इस बात का अफसोस होता है कि बहुत समय बर्बाद हो गया। लेकिन मित्रता तो सिर्फ एक पुल है उसके से गुजर जाना चाहिए और उसके ऊपर रहना शुरू नहीं करना चाहिए। पुल रहने के लिए नहीं होता, यह पुल मैत्री पर ले जाता है।
मैत्री तो शुद्ध सुगंध है, अगर प्रेम जड़ है और मित्रता फूल, तो मैत्री सुगंध। जिसे आँखे नहीं देख सकती। उसका स्पर्श भी नहीं किया जा सकता, उसे हाथों से पकड़ा नहीं जा सकता। खासकर उसको मुट्ठी में बिल्कुल नहीं रखा जा सकता है। हां, खुले हाथ पर उसे रखा जा सकता है, लेकिन बंद हाथ में नहीं।
प्राचीनकाल में रहस्यदर्शी जिसे प्रार्थना कहते थे, मैत्री वही प्रार्थना है। मैं इसको प्रार्थना नहीं कहना चाहता, क्योंकि यह शब्द गलत लोगों से संबंधित है। यह शब्द सूंदर है, लेकिन गलत संगत में पड़ कर खराब हो गया है।