परमात्मा!

परमात्मा!


अगर उठ गया तो पहले ही कदम में भी मंजिल मिल सकती है। सवाल है उठने का। क्योंकि परमात्मा दूर थोड़े ही है कि बहुत कदम उठाने पड़ेंगे। परमात्मा तो पास से भी पास है। सच तो यह है, एक भी कदम उठाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि परमात्मा तुम्हारे भीतर बैठा है। यह कदम उठाने की बात तो प्रतीकात्मक है। यह तो सिर्फ इस बात की खबर है कि तुमने हिम्मत की, तुमने चुनौती स्वीकार की, तुमने कहा मैं राजी हूं।