ओशोवाणी

ओशोवाणी


शरीर को ताजा करें। जगायें अपनी इन्द्रियों की संवेदनाओं को और निचोड़ लें जीवन का सारा रस। हम एक असाधारण जगत में जी रहे हैं। यहां चारों तरफ विराट मौजूद है न मालूम कितने रूपों में। यहां परम-सौंदर्य घटित हो रहा है, परम-संगीत बज रहा है, नाद का कोई अंत नहीं है। लेकिन हम बहरे-अंधे की तरह इस सबके बीच से गुजर जाते हैं। हमें कुछ भी छूता नहीं। हम मरी हुई लाशें हैं। हम ने अपनी इन्द्रियों को कब्रे बना दिया है। हम उन के भीतर घिरे हैं, ताबूत की तरह बंद हैं। हम गुजर रहे हैं- हमें कुछ छूता नहीं, कुछ अनुभव नहीं होता।
और हम पूछते हैं, आनंद कंहाँ है? और हम पूछते हैं, परमात्मा कंहाँ है? और वह चारों तरफ मौजूद है। बाहर-भीतर उसके अतिरिक्त कोई भी नहीं है। और ऐसा कोई क्षण नहीं है, जो आनंद का क्षण न हो। लेकिन अनुभव करने वाला चाहिए। इन्द्रियों की जितनी शुद्धता हो जीवन में और इन्द्रियों का जितना प्रगाढ़ अनुभव हो, उतना ही जीवन चरम पर पहुंचता है। जब स्थूल इन्द्रियाँ संवेदनशील हो जाती है तो उनके पीछे छिपी हुई सूक्ष्म इन्द्रियाँ गतिमान होती है।