‘जिन्दगी का फलसफा’

'जिन्दगी का फलसफा'


लाओत्से ने जिंदगी को सीधा खड़े होकर देखा है। उसने देखा है कि सम्राटों के हृदयों में शांति नहीं, न प्रेम है, न आनंद है। कभी-कभी भिखारी के जीवन में आनंद की वर्षा तो होते देखी है, लेकिन सम्राटों के जीवन में कभी नहीं देखी। अन्यथा बुद्ध नासमझ थे कि महलों को छोड़ कर और भिखारी हो जाते? कि महावीर पागल थे? जिसे तुमने ऊपर देखा है, वह तुम्हारी कहीं न कहीं कोई भूल है। क्योंकि हमने उस ऊपर से बैठे आदमी को नीचे उतरते देखा है। बुद्ध और महावीर्र ईष्या से भर गए हैं भिखारियों की, इसीलिए भिक्षु हो गए। उन्होंने कुछ जीवन का राज देखा। लाओत्से वही कह रहा है। उन्होंने देखा कि जीवन तो बड़ी छोटी-छोटी चीजों में आनंदित है। पद, शक्ति की दौड़ से जीवन का आनंद खो जाता है।
तुम जिस दिन ना-कुछ हो रहोगे उस दिन जीवन बरस जाएगा। इसलिए भिखारी जिस शांति से सोता है, सम्राट नहीं सोता। साधारण आदमी जिसको हम कहें, जिसको कोई भी नहीं जानता, वह जिस भांति प्रेम करता है, उस भांति, जिन लोगों को बहुत लोग जानते हैं, वे लोग प्रेम नहीं कर पाते।
अमरीका की बड़ी अभिनेत्री थी-बड़ी से बड़ी अभिनेत्री-मर्लिन मनरो। उसने आत्महत्या की। उसने बहुत बार विवाह किया। उस जैसी सुंदर स्त्री न थी इस सदी में। दुनिया के बड़े से बड़े लोग उससे विवाह को आतुर थे। और भरी जवानी में उसने आत्महत्या की। और आत्महत्या का कारण उसने यह लिखा कि मैं प्रेम करने में बिलकुल असमर्थ हूं, और मैं कोई प्रेम नहीं पा सकी। साम्राज्ञी थी वह सिनेमा जगत की, लेकिन प्रेम न पा सकी। क्या हो गया? क्या अड़चन आ गई?
असल में, प्रेम उसी हृदय में उपजता है जिस हृदय में शक्ति की आकांक्षा नहीं उपजती। जहां शक्ति की आकांक्षा उपज गई वहीं प्रेम मर जाता है, प्रेम का दम घुट जाता है। और जिसने प्रेम न जाना उसने क्या जाना? वह बैठा रहे शिखर पर, जीवन को गंवा दिया उसने। जिसने धन जाना और धर्म न जाना, उसने जीवन को गंवा दिया। उसने कुछ भी न जाना। जिसने शब्द जाने, शास्त्र जाने और सत्य को न जाना, वह वंचित रह गया। जब सब तरफ सब कुछ भरा था और मिल सकता था तब भी वह खाली हाथ प्यासा लौट गया।
उस दिन से आपका जन्म शुरू हुआ जिस दिन से यह जिंदगी व्यर्थ दिखाई पड़नी शुरू हो जाए, उस दिन मैं कहूंगा आपकी असली जिंदगी शुरू हुई। आपका असली जन्म शुरू हुआ। और इस तरह के आदमी को ही द्विज, ट्वाइस बॉर्न। जनेऊ डालने वाले को नहीं। क्योंकि जनेऊ तो किसी को भी डाला जा सकता है।
द्विज हम कहते रहे हैं उस आदमी को जो इस दूसरी जिंदगी में प्रवेश कर जाता है। एक जन्म है जो मां-बाप से मिलता है वह शरीर का ही हो सकता है। कि और जन्म है जो स्वयं की खोज से मिलता है वही जीवन की शुरुआत है। इस जन्मदिन पर, मेरे तो नहीं कह सकता। क्योंकि मैं तो जीसस, बुद्ध और लाओत्से से राजी हूं। लेकिन इस जन्मदिन पर जो कि अ, ब, स, द किसी का भी हो सकता है। आपसे इतना ही कहना चाहता हूं कि एक और सत्य भी है। उसे खोजें। एक और जीवन भी है यहीं पास, जरा मुड़ें तो शायद मिल जाए। बस किनारे पर, कोने पर ही। और जब तक वह जीवन न मिल जाए, तब तक जन्मदिन मत मनाएं। तब तक सोचें मत जन्म की बात। क्योंकि जिसको आप जन्म कह रहे हैं, वह सिर्फ मृत्यु का छिपा हुआ चेहरा है। हां, जिस दिन जिसको मैं जन्म कह रहा हूं, उसकी आपको झलक मिल जाए, उस दिन मनाएं। उस दिन फिर प्रतिपल जन्म है, क्योंकि उसके बाद फिर जीवन ही जीवन हैदृशाश्वत, अनंतय फिर उसका कोई अंत नहीं है। ऐसे जन्म की यात्रा पर आप निकलें, ऐसी परमात्मा से प्रार्थना।