जीवन

आदमी यूं ही गंवाता है जीवन


आदमी यूं ही जीवन गंवाता है और सोचता यह है कि कैसा दुर्भाग्य है, कैसा अभागा हूं, किन अभिशप्त घड़ियों में पैदा हुआ कैसे थे ग्रह-नक्षत्र मेरे खराब? न ग्रह-नक्षत्र खराब थे, न घडियां बुरी थीं। तुम उतनी ही क्षमता लेकर पैदा होते हो जितनी कोई भी बुद्ध कभी पैदा हुआ है, लेकिन क्षमता की तलाश नहीं करते और दौड़त फिरते हो बाहर, पूछते हो औरों से अपना पता। अपना पता पूछना हो तो आंख बंद करो। 
अपना पता पूछना हो तो विचार बंद करो। अपना पता पूछना हो तो मारो गहरे से गहरे डुबकी अपने में। उतरो भीतर! वहीं से रसधार मिलेगी ध्यान का इतना ही अर्थ है। निर्विचार हो जाने की कला। और जिसके हाथ में निर्विचार होने की कला गयी, सोने की कुंजी आ गयी, जो सब ताले खोल दे। मैं तुम्हें ध्यान दे सकता हूं, ज्ञान नहीं दे सकता। इस भेद को ठीक से समझ लो। पंडित-पुरोहित तुम्हें ज्ञान देते हैं, ध्यान नहीं। और ज्ञान बासा है, उधार है, तुम्हारा नहीं, किसी काम का नहीं। मैं तुम्हें ध्यान देता हूं-सिर्फ खोदने की विधि, एक कुदाली, कि ये रही कुदाली, इससे खोदो, अपना कुंआ बनाओ। यह बात कुछ ऐसी है कि आने कुएं से ही पानी पी सकोगे। किसी और के कुएं से कोई पानी नहीं पी सकता। यह कुआं भीतर है।