‘ओशो वाणी’

‘ओशो वाणी’


संत दादू ने अपने शिष्यों की पीड़ा समझकर भविष्यवाणी की थी कि सौ साल बाद एक संत प्रगट होगा। वही पीड़ा मेरे समेत आपके सभी शिष्यों में मौजूद है। लगता है कि आपकी अनुपस्थिति हमें अनाथ बना देगी। हमारे अंदर भी यही गहरी आकांक्षा जगती है। कि हमें भी कोई सौ साल बाद संभालने वाला हो। कृपा कर प्रकाश डालें। पहली तो बात, मेरे रहते तुम सनाथ क्यों नहीं हो जाते हो? तुम्हारे इरादे अनाथ रहने के ही हैं? मैं तैयार हूं तुम्हें सनाथ करने को, और तुम कह रहे हो कि जब आप चले जाएंगे। अगर तुम एक बार सनाथ हो गए तो सनाथ हो गए फिर अनाथ नहीं होते। अनाथ वे ही हो जाएंगे मेरे जान के बाद, जो मेरे होते हुए भी अनाथ थे। इसे खूब ख्याल में ले लेना।
अगर मुझसे संबंध जुड़ गया तो परम से संबंध जुड़ गया। वही नाथ है उसके बिना तो अनाथ ही रहोगे। और अगर मुझे चूक गए तो सौ साल बाद अगर कोई आ भी जाए तो उसको भी चूक जाओगे। सौ साल में चूकने की आदत और मजबूत हो जाएगी। सौ साल अभ्यास कर लोगे न चूकने का! सौ साल के बाद की फिक्र कर रहे हो। मैं अभी मौजूद हूं, दरवाजा अभी खुला है। तुम कहते हो, जब दरवाजा बंद हो जाएगा, सौ साल बाद कोई दरवाजा खुलेगा कि नहीं? अभी दरवाजा खुला है। तुम्हें सौ साल के बाद ही प्रवेश करना है? सौ साल और संसार में रहना है? अभी थके नहीं? अभी ऊबे नहीं? जो अभी हो सकता है उसे कल पर मत टालो। और अगर अभी न कर सके तो कल कैसे कर सकोगे? करना है तो इस क्षण हो सकता है। इसलिए मैं सौ साल के बाद की कोई भविष्य-वाणी न करूंगा। मैं भविष्य की तरफ तुम्हें उन्मुख ही नहीं करना चाहता। वर्तमान मेरे लिए  सब कुछ है, यही क्षण सब कुछ है। कल न तो आता है, न कभी आएगा, न कभी आया है। कल की आशा ही संसार है। आज में प्रवेश कर जाना ही धर्म है। धर्म बिल्कुल नगद बात है। उधारी की बातें करो।
अब तुम कह रहे हो कि सौ साल बाद आप की अनुपस्थिति हमें अनाथ बना देगी। मेरी उपस्थिति तुम्हें सनाथ बना रही है? अगर मेरी उपस्थिति तुम्हें सनाथ बना रही है तो अनाथ होने का फिर कोई उपाय नहीं रहा। बात ही खत्म हो गई। फिर तुम अनाथ कभी नहीं हो सकोगे। यह नाता कोई दिन दो दिन का नहीं है। यह नाता फिर शाश्वत है। जो तुम्हें चाहिए वह मैं तुम्हें देने को तैयार हूं, तुम भर लेने को तैयार हो जाओ। तुम भर अपना हृदय खोला। जो प्रश्न तुमने पूछा है, वह प्रश्न औरों के मन में भी हो सकता है। वह प्रश्न किसी एक का नहीं है। वह मैं बहुतों की आंखों में देखता हूं। अलग अलग उत्तर देने की जरूरत नहीं है। दरवाजा खुला है। आज नगद है और कल उधार हो जाएगा। नगद को स्वीकार कर लो। हिंमत करो। चुनौती लो। अपने को खोलोगे तो ही सनाथ हो सकोगे। स्वयं मिटे बिना कोई सनाथ नहीं होता। क्योंकि जब अहंकार मिटता है तब परमात्मा प्रवेश करता है।