ओशो वाणी

एक बात साध लो-साक्षी शेष कुछ भी करने को नहीं है। शेष सब अपने से हो जायेगा। शेष सदा होता ही रहा है। तुम नाहक ही बीच-बीच में खड़े हो जाते हो। मैंने सुना है, एक हाथी एक पुल पर से गुजरता था। हाथी का वजन--पुल कंपने लगा! एक मक्खी उसकी सूंड़ पर बैठी थी। जब दोनों उस पार हो गये, तो मक्खी ने कहा, ‘बेटा! हमने पुल को बिल्कुल हिला दिया।’ हाथी ने कहा, ‘देवी! मुझे तेरा पता ही न था, जब तक तू बोली न थी कि तू भी है।’ यह तुम जो सोच रहे हो तुमने पुल को हिला दिया, यह तुम नहीं हो यह जीवन-ऊर्जा है। तुम तो मक्खी की तरह हो, जो जीवन-ऊर्जा पर बैठे कहते हो, ‘बेटा, देखो कैसा हिला दिया!’ यह अहंकार तो सिर्फ तुम्हारे ऊपर बैठा है। तुम्हारी जो अनंत ऊर्जा है, उससे सब कुछ हो रहा है। वह परमात्मा की ऊर्जा है उसमें तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं है। वही तुममें श्वास लेता, वही तुममें जागता, वही तुममें सोता तुम बीच में ही अकड़ ले लेते हो। इतना जरूर है कि तुम जब अकड़ लेते हो तो वह बाधा नहीं डालता। हाथी ने तो कम-से-कम बाधा डाली। हाथी ने कहा कि देवी, मुझे पता ही न था कि तू भी मेरे ऊपर बैठी है। इतना तो कम-से-कम हाथी ने कहा परमात्मा इतना भी नहीं कहता। परमात्मा परम मौन है। तुम अकड़ते हो तो अकड़ लेने देता है। तुम उसके कृत्य पर अपना दावा करते हो तो कर लेने देता है। जो तुमने किया ही नहीं है, उसको भी तुम कहते हो मैं कर रहा हूं, तो भी वह बीच में आ कर नहीं कहता कि नहीं, तुम नहीं, मैं कर रहा हूं! क्योंकि उसके पास तो कोई ‘मैं’ है नहीं, तो कैसे तुमसे कहे कि मैं कर रहा हूं? इसलिए तुम्हारी भ्रांति चलती जाती है। लेकिन गौर से देखो, थोड़ा आंख खोल कर देखो तुम्हारे किये थोड़े ही कुछ हो रहा है सब अपने से हो रहा है! यही नियति का अपूर्व सिद्धांत है, भाग्य का अपूर्व सिद्धांत है कि सब अपने से हो रहा है। गलत लोगों ने उसके गलत अर्थ ले लिये, गलत लोगों की भूल। अन्यथा भाग्य का इतना ही अर्थ है कि भाग्य के सिद्धांत को अगर तुम ठीक से समझ लो, तो तुम साक्षी रह जाओगे, और कुछ करने को नहीं है फिर।