सन्यास आंदोलन!

सन्यास आंदोलन!


मैंने संन्यास आंदोलन रोका नहीं है, मैंने इसे धर्म बनने से रोका है! आंदोलन एक प्रवाह होता है यही आंदोलन का अर्थ है वह गति कर रहा है, वह बढ़ रहा है। परंतु ‘धर्म’ मृत है, उसका गति करना रुक गया है, उसका बढ़ना रुक गया है। वह मृत है। उसके लिए श्मशान ही एकमात्र स्थान है। हर पुजारी या पुजारिन एक मृत धर्म चाहते हैं, क्योंकि उसके बारे में सब कुछ पहले से पता है, जाना-पहचाना हुआ है। उसमें कोई राय नहीं है, कोई विकास नहीं, कोई प्रगति नहीं। ईसाइयत को ही देखो, दो हजार साल बीत गए हैं, क्या वे जीसस क्राइस्ट से एक कदम भी आगे बढे हैं? इससे विकास रुकता है, प्रगति रुकती है।
अब मैं चाहता हूँ कि मेरे लोग खुले रहें, जीवंत रहें, विकसित होते रहें, हमेशा तरोताजा और नवीन। यह एक नये किस्म की घटना बनी रहे धार्मिकता। उसमें कोई लेबिल न चिपका हो, क्योंकि हर लेबिल एक पूर्ण विराम है। और मुझे पूर्ण विराम बिल्कुल पसंद नहीं है, मुझे अर्ध विराम भी पसंद नहीं है। जीवन सदा बहता है। मैंने माला वापिस ले ली है। भारत में यह एक प्रतीक है, क्योंकि यहाँ पर हजारों साल तक सभी धर्मों ने लाल वस्त्र और माला का प्रयोग संन्यास के प्रतीक की तरह किया है।
मुझे संन्यास की उस परंपरागत धारणा को नष्ट करना था क्योंकि संन्यासी को ब्रह्मचारी रहना है, संन्यासी स्त्री से बात नहीं कर सकता, उसे छू नहीं सकता संन्यासी घर में रह नहीं सकता, उसे मंदिर में रहना है उसे एक वक्त ही भोजन लेना है, उसे बार-बार उपवास करना है, उसे अपने आपको सताना है यह रुग्ण है।
हमारे पश्चिम में आने से अब लाल वस्त्रों तथा माला की आगे आवश्यकता नही रहीं, क्योंकि पश्चिम में ये कभी भी धर्म के प्रतीक नहीं रहे। और, अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो अब तुम पूरी तरह से बाहरी प्रतीकों के बिना हो। सारा कुछ जो बचा है, वह धार्मिकता का आवश्यक भीतरी भाग, वह है भीतर की ओर यात्रा, जो केवल तुम कर सकते हो। मैं तुम्हारे लिए यह नहीं कर सकता, कोई भी तुम्हारे लिए यह नहीं कर सकता।
अतः अब केवल आवश्यक गुण बचा है, धार्मिकता का सर्वाधिक मूलभूत गुण, और वह है ध्यान! तुम्हें भीतर की ओर जाना होगा। अतः अब आगे के लिए तुम्हारे पास कोई बाहरी प्रतीक नहीं है, यह अच्छा है, क्योंकि तुम्हें केवल एक ही चीज याद रखनी है, यदि तुम संन्यासी होना चाहते हो कैसे साक्षी होने की साधना में चलना!
अन्यथा ऐसी संभावना है कि लाल वस्त्र और माला पहन कर तुम पूर्णतया संतुष्ट हो जाओ कि तुम एक संन्यासी हो कृ तुम नहीं हो।वस्त्र किसी को नहीं बदलते, न ही माला किसी का रूपांतरण करती है। परंतु तुम अपने को धोखा दे सकते हो।
अब मैं वह सब तुमसे लिए ले रहा हूँ, और केवल एक सरल सी चीज बाकी छोड़ रहा हूँ। तब तुम धोखा नहीं दे सकते या तो तुम उसे करते हो या तुम नहीं करते हो। बिना उसके किए तुम संन्यासी नहीं हो। अतः आंदोलन अब अपनी शुद्धतम अवस्था में आ चुका है, सर्वाधिक आवश्यक के स्तर परय और उसे विदा नहीं कर दिया गया है!