धन और ध्यान

धन और ध्यान


ध्यानी के पास धन होगा, तो जगत का हित ही होगा, कल्याण ही होगा। क्योंकि धन ऊर्जा है, धन शक्ति है। धन बहुत कुछ कर सकता है। मैं धन विरोधी नहीं हूँ, मैं उन लोगों में नहीं, जो समझाते हैं कि धन से बचो! भागो धन से, वे कायरता की बातें करते हैं। मैं कहता हूं जियो धन में, लेकिन ध्यान का विस्मरण न हो। ध्यान भीतर रहे, धन बाहर फिर कोई चिंता नहीं है। तब तुम कमल जैसे रहोगे, पानी में रहोगे और पानी तुम्हें छुएगा भी नहीं। ध्यान रहे, धन तुम्हारे जीवन का सर्वस्व न बन जाए। तुम धन को ही इकट्ठा करने में न लगे रहो। 
धन साधन है, साध्य न बन जाए। धन के लिए तुम अपने जीवन के अन्य मूल्य गंवा न बैठो। तब धन में कोई बुराई नहीं है। मैं चाहता हूं कि दुनिया में धन खूब बढ़े, इतना बढ़े कि देवता तरसें पृथ्वी पर जन्म लेने को। धन होना चाहिये, प्रेम का, सत्य का, ईमानदारी का, सरलता से निर्देश का, निर-अहंकारिता का, ये धन से भी बड़े धन हैं। कोहिनूर फीके पड़ जाएं, ऐसे भी हीरे हैं- ये भीतर के हीरे हैं। एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन से किसी ने पूछा- नसीरुद्दीन सुना है कि तुमने नई फिल्म बनाई है, कितने साझीदार हैं? मुल्ला ने कहा- अब आपसे क्या छिपाना, चार तो अपने ही परिवार के लोग है और एक पुराना मित्र, इस तरह पांच पार्टनर हैं। उसने पूछा- फर्म का नाम क्या रखा है? मुल्ला ने कहा - मेसर्स मुल्ला ऐंड मुल्ला ऐंड मुल्ला ऐंड मुल्ला ऐंड अब्दुल्ला कंपनी उसने कहा- नाम तो बड़ा अच्छा है, मगर यह अब्दुल्ला कहां से बीच में आ टपका? दुखी स्वर में मुल्ला नसरुद्दीन बोला- पैसा तो उसी बेवकूफ का लगा है। यहां मित्रता पैसे की है, संबंध पैसे के हैं। हम धन का एक ही अर्थ लेते हैं कि दूसरों की जेब से निकाल लें। इससे कुछ हल नहीं होता। धन उसकी जेब से तुम्हारी जेब में आ जाता है, फिर तुम्हारी जेब से दूसरा कोई निकाल लेता है।
धन जेबों में घूमता रहता है, लेकिन धन पैदा नहीं होता। अभी हमने यह नहीं सीखा कि धन का सृजन कैसे किया जाता है। अभी धन हमारे लिए शोषण का ही अर्थ रखता है। जो सच में समृद्ध देश हैं, उन्हें पता है कि धन शोषण नहीं, सृजन है। हमारा देश किसी देश से गरीब नहीं है, लेकिन समस्या यह है कि हम मूढ़तापूर्ण बातों को महत्वपूर्ण मानते हैं। यहां दरिद्र को एक नया नाम दे दिया गया- दरिद्र नारायण! जब तुम दरिद्र को नारायण कहोगे, तो उसकी दरिद्रता मिटाओगे कैसे? भगवान को कोई मिटाता है क्या? भगवान को तो बचाना पड़ता है। दरिद्र नारायण की तो पूजा करनी होती है। दरिद्र नारायण के पैर दबाओ। उसे दरिद्र रखो, नहीं तो वह नारायण नहीं रह जाएगा। 
हम अगर गरीब की पूजा करेंगे, तो अमीर कैसे बनेंगे। अगर हम धन का तिरस्कार करेंगे, तब तो धन को पैदा करना ही बंद कर देंगे। हां, धन को शोषण से मत पैदा करना। धन का सृजन करने का तरीका खोजो। यह तो हमारे हाथ में है- मशीनें हैं, तकनीक है! जमीन से हम उतना ले सकते हैं, जितना चाहिए। सारी तकनीक उपलब्ध है। धन के सृजन के लिए मशीन की मदद लो। अगर तुम मशीन, रेलगाड़ी, टेलीग्राफ के खिलाफ रहोगे, तो दरिद्र ही रहोगे। दीन ही रहोगे। मशीनों का जितना उपयोग हो, उतना ही अच्छा है। क्योंकि मशीन जितनी काम में आती हैं, आदमी का उतना ही श्रम बचता है। यह बचा हुआ श्रम किसी ऊंचाई के लिए लगाया जा सकता है। इसे नई खोजों में लगाया जाए। यह नए आविष्कारों में लगे। पृथ्वी सोना उगल सकती है, लेकिन बिना मशीन यह नहीं होगा। देश का औद्योगिकीकरण, यंत्रीकरण होना चाहिए। देश जितना समृद्ध होता है, उतना धार्मिक हो सकता है।