गुरू प्रताप साध

गुरू प्रताप साध की संगति


मैंने सुना है, एक फकीर एक यूनिवर्सिटी में अध्यापक हो गया। जैसे ही वह नया-नया पहले दिन कक्षा में उपस्थित हुआ तो एक मनचले छात्र ने अपना नाम आने पर खड़े होकर कहा यैस मेडम! सुनते ही कक्षा में हंसी गूंजने लगी। लेकिन फकीर तो फकीर था! फकीर भी खिलखिला कर हंसा और इतने जोर से हंसा कि कक्षा में धीमी-धीमी जो हंसी चल रही थी, वह एक झटके में बंद हो गयी। और फकीर ने फिर शालीनता से कहा यह इश्क मोहब्बत की तासीर कोई देखे, अल्लाह भी मजनुं को लैला नजर आता है। अब तो पूरी कक्षा ठहाकों से गूंज उठी। बेचारे मजनूं की हालत सच में देखने जैसी थी। कौन तुम्हें चैंकाएगा? कौन तुम्हें झकझोरगा? फकीरों से मिलना तो मुश्किल होता जा रहा है। जिनसे तुम मिलोगे भी वे भी बंधनों में बंधे हैं कोई हिंदु है, कोई मुसलमान है, कोई ईसाई है। और जो हिंदु है, जो मुसलमान है, जो ईसाई है, वह साधु नहीं है, वह साधु नहीं हो सकता। साधु का क्या कोई धर्म होता है? साधु के तो सब धर्म अपने होते हैं। साधु तो स्वयं धर्म होता है। साधु का कोई विशेषण नहीं होता। जब तक कोई कहे कि जैन साधु तब तक समझना कि साधु नहीं। जब कोई कह सके हिम्मत से कि साधु, विशेषणरहित तब समझना कि कुछ बात हुई, कोई क्रांति घटी। ऐसा कोई साधु मिल जाए, ऐसी कोई संगति मिल जाए, तो तुम जाग सकते हो।
गुरु-परताप साध की संगति नहीं तो इस संसार में तो सब सुलाने के आयोजन हैं। यह संसार तो सोये हुए लोगों की भीड़ है। और सोये हुए लोग जागे हुए आदमी को बर्दाश्त नहीं करते क्योंकि जगा हुआ आदमी कुछ खटर-पटर करेगा, कुछ शोरगुल करेगा, उठेगा, बैठेगा।