प्रेम को प्रार्थना बनाओं
कई बार ऐसा होता है कि ध्यान पास ही होता है, पर हम दुसरी चोजों में व्यस्त होते है। वह सूक्ष्म आवाज हमारे भीतर ही है, लेकिन हम निरंतर शोर से, व्यस्तताओं से, जिम्मेवारिओ से, कोलाहल से भरे हुए है। और ध्यान आता है एक फुस-फुसाहट की तरह, वह नारे लगाते हुए नही आता, वह बहुत ही चुपचाप आता है। वह कोई शोरगुल नही करता। उसके कदमो की आहट भी सुनाई नही पड़ती। यदि हम व्यस्त है, तो वह प्रतीक्षा करता है और लौट जाता है।
तो एक बात तय कर ले, कि कम से कम एक घंटा रोज बस शांत बैठे और प्रतीक्षा करें। कुछ मत करें, बस आंखे बंद करके शांत बैठ जाएं- गहन प्रतीक्षा में, एक प्रतीक्षारत हॄदय के साथ, एक खुले खुले हॄदय के साथ। सिर्फ प्रतीक्षा करें कि यदि कुछ घंटे तो हम उसका स्वागत करने के लिए तैयार हों। यदि कुछ न घटे तो निराश न हो। कुछ न घटे तो भी एक घंटा बैठना अपने आप मे विश्रमदायी है। वह हमें शांत करता है, स्वस्थ करता है, तरोताजा करता है और हमे हमारी जड़ो से जोड़ता है।