'ओशोवाणी'

कश्मीर में रहना चाहते थे-ओशो कर दिया गया था मना !


मैंने बीस साल तर निरंतर कश्मीर में रहने की कोशिश की। परंतु कश्मीर का कानून बड़ा अजीब है। केवल कश्मीरी लोग ही वहां रह सकते है। दूसरे भारतीय भी नहीं। यह तो अजीब बात है। किंतु मुझे मालूम है कि नब्बे प्रतिशत कश्मीरी मुसलमान है और उनको यह डर है कि अगर भारतीयों को वहां बसने की अनुमति मिल जाएगी तो हिंदुओं की संख्या अधिक हो जाएगी। क्योंकि वह भारत का ही हिस्सा है। अब तो यह खेल वोटों का है हिंदुओं को वहां नहीं बसने दिया जाएगा।


मैं हिंदू नहीं हूं किंतु सरकारी नौकर मंदबुद्धि वाले होते है। इनको तो मानसिक अस्पतालों में रखना चाहिए। वे मुझे वहां रहने की अनुमति ही नहीं देते है। मैं कश्मीर के मुख्यमंत्री से भी मिला था जो पहले कश्मीर का प्रधानमंत्री माना जाता था। उसे प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री पद पर लाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। अब एक देश में दो प्रधानमंत्री कैसे हो सकते है। किंतु यह व्यवति शेख अब्दुल्ला इस बात को मानने के लिए राजी ही नहीं था। उसको कई वर्ष तक कैद में रखना पडा तब कश्मीर के सारे संविधान को बदल दिया गया। किंतु यह अजीब बँड़ वैसे का वैसा ही बना रहा, इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। शायद कमेटी के सब सदस्य मुसलमान थे और वे नहीं चाहते थे कि कोई कश्मीर मे प्रवेश कर सके। 


मैंने बहुत कोशिश कि किंतु सफल न हो सका। इन राजनीतिज्ञों की मोटी खोपड़ी में कुछ भी नहीं घुस सकता। मैंने शेख से कहारू तुम पागल हो क्या, मैं हिंदू नहीं हूं। तुम्हे मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। और मेरे लोग तो सारी दुनिया से आ रहे है। वे तुम्हारी राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं डालेंगे। उसने कहा फिर भी हमें सावधान तो रहना ही चाहिए। मैंने कहा अच्छा, तुम सावधान बने रहो ओर इस प्रकार तुम मुझे और मेरे लोगो को खो बैठोगे। कश्मीर को कितना लाभ होता। परंतु ये राजनीतिज्ञ जन्म से ही बहरे होते है। उसने सुन कर भी नहीं सुना। मैंने उससे कहा आपको पता है कि मैं तो आपको बहुत वर्षों से जानता हूं। और मुझे कश्मीर से बहुत प्रेम हैउसने कहा मैं आपको जानता हूंइसीलिए तो मुझे आपसे डर है। आप राजनीतिज्ञ नहीं है। आप बिलकुल दूसरे ही वर्ग के हो, ऐसे लोगों पर हम विश्वास नहीं करते। उसने अविश्वास शब्द का प्रयोग किया और मैं तुमसे 'विश्वास' की बार कर रहा हूं। इस समय मैं मस्तो को नहीं भूल सकता। बहुत समय पहले उसने ही मुझे अब्दुल्ला से परिचय करवाया था। बाद में जब मैं कश्मीर में प्रवेश करना चाहता था, विशेषतः पहल गाम में तो मैंने शेख को इस परिचय की याद दिलाई। शेख ने कहा हां, मुझे याद है कि यह आदमी भी खतरनाक था, और आप तो उससे भी अधिक खतरनाक हो। चुंकी आपका परिचय मस्तो बाबा ने दिया था इसीलिए आपको कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बनने दूंगा। मस्तो ने मेरा परिचय बहुत से लोगों से कराया था। उन्होंने सोचा था कि शायद मुझे उनकी जरूरत पड़ जाए। और निश्चित ही मुझे उनकी जरूरत थी। अपने लिए नहीं अपने काम के लिए। परंतु कुछ एक को छोड़ कर अधिकांश लोग तो कायर निकले। उन सबने यही कहा। हमें मालम है कि आप समाधिस्थ हो, जाग्रत हो। मैने कहा बस वहीं रूक जाओतुम लोंगो के मुहँ से ये शब्द निकलते ही पवित्रता खो देते है। या तो तुम लोग मेरी बात मान लो या सीधे इनकार कर दो। दूसरी किसी प्रकार की बकवास न करो।