मां-बाप की सेवा ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है

का सबसे बड़ा ___ महाराष्ट्र में प्यारी कथा है विठोबा के मंदिर की कि एक भक्त अपनी मां की सेवा कर रहा है और कृष्ण उसे दर्शन देने |आए हैंउन्होंने द्वार पर दस्तक दा हैं। तो उसने कहा, अभी गड़बड़ न करो, अभी मैं मां के पैर दाबता हूं। लेकिन कृष्ण ने कहा, सुनो भी मैं कौन ह। जिसके लिए तमने सदा प्राथना का आर सदा पुकारा, वही कृष्ण हूंइतनी मुश्किल और इतनी प्रार्थनाओं के बाद |आया हूं। तो उसके पास एक बड़ा धर्म हैईंट पडी थी, उसने ईंट सरका दी लेकिन उस तरफ देखा नहीं और कहा. इस पर बैठो. विश्राम करो, जब तक मैं मां के पैर दाब लूं। वह रातभर पैर दाबता रहा और कष्ण उस ईंट पर खड़े-खड़े थक गये और मर्ति हो गये होंगे। तो विठोबा की मूर्ति है वह ईंट पर खडी है। मगर गजब का भक्त रहा होगा-गजब का भरोसा रहा होगा! खुद्दारियां यह मेरे तजस्सुस की देखना!



दुख होगा, तो दुख अंगीकार करूंगा। सुख होगा, तो सुख अंगीकार करूंगा। मैं अपने को बीच से हटा लूंगा जों होगा , उसे होने दूंगा। मैं रिक्त हो जाऊंगाअडचन न . डालूंगी बाधा न डालूंगा। मांग खड़ी न करूंगा अपेक्षा न रखूगा। मैं दूर हट जाऊंगा, जैसे मैं रहा नहीं। आए हवा का झोंका ठीक न आए - ठीक उजाला आए अंधेरा आए : सख के दिन और दर्दिन आएं; जो भी आता हो. आए मैं तो हूं नहींऐसी भावदशा में फिर कहां दुख ? फिर कहां विषाद ?


__ -यह स्वाभिमान मेरी खोज का! ___मंजिल पर आकर अपना पता पूछता हूं मैं। ___ कृष्ण को भी खड़ा रखाकृष्ण को भी ईंट पर खड़ा कर दिया। भक्त का भरोसा इतना है, भक्त की श्रद्धा इतनी है कि जल्दी क्या है! बेचौनी क्या है! भक्त को भगवान मिला ही हुआ है। भगवान लौट जायेगा, यह तो सवाल ही नहीं उठतालौट भी जायेगा तो जायेगा कहां! इसलिए अगर भक्त की दशा हो और खेल थोड़ी देर और चलाना हो, तो जलस्रोत सामने फूट पड़े, तुम्हे छाती तक डुबा ले, तो भी खड़े रहना, कोई हर्जा नहीं। आएगा! वह भी आ रहा है, तुम्हें खोज रहा है। वह ओंठों तक भी आयेगा। लेकिन अगर बहुत चेष्टा से आए हो तो इतना धैर्य मत करना। क्योंकि जो चेष्टा से मिलता है वह क्षण में खो भी सकता है। मन की किसी भाव-दशा में जलस्रोत दिखाई पडता हैय भाव-दशा बदल जाये, खो जायेगा। अगर मन की तरंगों पर कब्जा पाकर, ध्यानस्थ होकर, उसके जलस्रोत की झलक मिली हो तो जल्दी पी लेना, क्योंकि तरंगों का क्या पता, विचार फिर आ जायें, फिर चूक जाओ! साधक कई बार चूक जाता है पहुंच-पहुंच कर क्योंकि साधक का पहुंचना मन की एक खास दशा पर निर्भर करता है। वह दशा बड़ी संकीर्ण है और बड़ी कठिन है! उसे क्षणभर भी बांधकर रखना बहुत मुश्किल है। महावीर ने कहा है, अड़तालीस सेकंड तुम ध्यान में रह जाओ तो सत्य की उपलब्धि हो जायेगी। अड़तालीस सैकेंड! अड़तालीस सैकेंड भी मन को


ध्यान की अवस्था में रखना कठिन है। लेकिन भक्त तो चौबीस घंटे भी भगवान के भाव में रह सकता है। वह भूलता भी है तो भी उसी को भूलता है याद भी करता है तो भी उसी की याद का याद करता है लेकिन उससे कभी नहीं छूटता। उसका भूलना भी उसी का भूलना है! अगर पीठ भी करता है तो उसी की तरफ करता है और मुंह भी करता है तो उसी की तरफ करता है|भक्त की बड़ी अनूठी स्थिति है! तो तुम पर निर्भर है, पूछने वाले पर निर्भर है। अगर बामुश्किल खोज पाए हो तो जब पहंच जाओ पास तो देर मत कर देना, एकदम पी लेना! कौन जाने, कहीं पास आया हुआ स्रोत फिर न खो जाये! हां. अगर भक्त हो तो थोडा मला और खेल का ले सकते हो। और पहुंचकर खेल का जो मजा है वह और ही है! पहले तो हम |तडफते हैं, डरे हए रहते हैं. परेशान रहते हैं, बेचैन रहते हैं। इसलिए तुमने अक्सर देखा, मंजिल पर जब लोग पहुंच जाते |हैं तो सामने ही बैठ जाते हैं विश्राम के लिए! वैसे चलते रहे, बड़े मीलों चलकर आए होंगे, लेकिन ठीक जब द्वार पर आ जाते हैं तो सोचते हैं ठीक, सीढ़ियों पर बैठ जाते हैं विश्राम करने के लिए। अब कुछ देर |नहीं, लेकिन अब पहुंच ही गए तो अब जल्दी भी क्या है!