नहीं सांझ नहीं भोर

नहीं सांझ नहीं भोर


अगर सुबह ब्रह्ममुहुर्त में उठना हो तो कम से कम नौ बजे सोने चले जाना। और जिसे नौ बजे सोने जाना हो, उसे दफ्तर दफ्तर में छोड आना चाहिए। नौ बजे आने के पहले तक उसे सारे संसार से अपने को बाहर हटा लेना चाहिए-रूठे से...।


रूठ जाना चाहिए, संसार से।


उदासीन हो जाना चाहिए।


दफ्तर से चलते वक्त बहुत होशपूर्वक दफ्तर को नमस्कार कर लेना चाहिए। दुकान छोड़ते वक्त कह देना चाहिए: अब कल आयेंगे कल तक विदा। फिर भूल कर भी उसका विचार नहीं करना। परानी आदत होगी कछ दिन आयेंगीलेकिन धीरे-धीरे होश सम्हालना और उसको विदा कर देना। घर आ गए दफ्तर भूल जाना चाहिए। दुकान बाजार भूल जाना चाहिए। अगर नौ बजे सोने जाना होतो सात बजे से तैयारी करने लगना सोने की। क्योंकि नींद एकदम से नहीं आ सकती। और पहले पहर में सबसे ज्यादा कठिन है।  स्नान कर लेना शांत बैठना अब कोई जरूरत नहीं कि अखबार पढ़े। क्योंकि अखबार इस जगत की पागलपन सूचना देता है। इस जगत के पागलपन की खबरें हैं उसमें कहीं हत्या हो गई कहीं चोरी हो गई कहीं कोई मार डाला गया कहीं कोई बम गिरा युद्ध हो गया कहीं कुछ, कहीं कुछ। सब उपद्रव की खबरें सांझ का वक्त उपद्रव की खबरें अगर पढेगे, तो रात दुख-स्वप्न देखोगे। पढ़ेगे तो यहीं कि इंदिरा गांधी कब जेल जान वाला है। लेकिन रात जेल चले जाओगे। क्योंकि वही गूंजता रहता है खोपड़ी में। उसकी तरंगे बनी रहती हैं। रेडिओ मत सुनना अखबार मत पढ़ना टलिविजन मत देखना। सच तो यह है कि अगर नौ बजे रात सोने चले जाना हो, तो में भी मत बैठना। पढ़ना भी मत। शिथिल करना अपने को लेट जाना-बॉथटब में घड़ी भर वहां पड़े रहना ज्यादा अच्छा होगा गरम जल में डूबे रहना शिथिल हो जाना।  हल्का भोजन करनाज्यादा भोजन मत कर लेना। क्योंकि जितना ज्यादा भोजन कर लोगे, उतना चौथे पहर में जागना मश्किल हो जाएगा। क्योंकि उतनी ही ज्यादा देर शरीर को पचाने में लग जाएगी। अगर हल्का भोजन किया, तो तुम अचानक पाओगे कि तीन बजने के करीब आते-आते नींद अपने करीब आते-आते नींद अपने से जाने लगी। क्योंकि शरीर को जरूरत नहीं रही। जितना भारी भोजन कर लोगे, जितना लूंस-ठूस कर पेट में भर दोगेउतना ही शरीर को पचाने में लंबा समय लग जाता है। और जब तक शरीर का भोजन न पच जाए तब तक जागना नहीं आता। जब जागना हो ब्रह्ममुहुर्त मेंतो हल्का भोजन करना कि तीन बजे. चार बजे तक आते-आते भोजन का काम पूरा हो जाय। शरीर को तुम अपने से जागता पाओगे। तुम चार बजे करीब पाओगे: आंख खुल गयी। अलार्म भर कर मत उठनाक्योंकि वह जबरदस्ती है उसकी कोई जरूरत नहीं। अलार्म की जगह एक नई कला सोचना। रात जब सोने लगो, प्रभु का स्मरण करते सोना, और प्रभु को कह कर सोना कि 'उठा देना मुझे चार बजे ।' तुम कुछ ही दिन में पाओगे: तीन-चार सप्ताह के भीतर यह कला काम करने लगेगीतुम अचानक पाओगे: जैसे कोई जगा गया। और प्रभु के द्वारा जगाए जाने का मजा ही और हैजैसे कोई कह गयाः उठो गोपाल। कोई निश्चित कह जाएगा। अगर तुमने चार बजे कहा, तो चार बजे ही यह घटना हो जाएगीलेकिन रात जब सोने लगोतो प्रार्थना करते ही सोना। क्योंकि रात तम जो स्मरण करते सोते हो, उसकी धुन रात भर बजती रहती है। शिव कथातुमने शिव की कथा सुनी होगी, कि जब पार्वती की मत्य हो गयी, तो शिव पार्वती की लाश को अपने कंधे पर लेकर सारे देश में भटकते फिरे, कि मिल जाए कोई हकीम, मिल जाए कोई वैद्य, हो जाए कोई चमत्कार-कोई जीवित कर दे पार्वती को! लाश सड़ने लगी। लाश लाश है। प्रकृति कोई अपवाद नहीं करती, पार्वती की लाश है तो क्या हुआ! सड़ने लगी, दुर्गंध उठने लगी अंग-अंग लाश के गिरने लगे लगे सड़-सड़ कर। कथा यही है कि जहां-जहां एक-एक अंग गिरा पार्वती का, वही-वही हिंदुओं का एक-एक तीर्थ बना। मगर लाश को ढोते हुए शिव! यह तम्हारी कथा हैयह कोई पुराण नहीं है, यह तुम्हारा मनोविज्ञान है। हर व्यक्ति लाश. • ढो रहा है। और लाशें सड़ जाती हैं। और लाशों के अंग जहां-जहां गिरते हैं, वहीं-वहीं तो तुम्हारी स्मृतियों के तीर्थस्थल हैं। बुढ़ापे में भी लोग लौट-लौटकर देखते हैं जवानी के तीर्थस्थल। कभी किसी स्त्री को प्रेम किया, किसी स्त्री को को प्रेम किया, किसी स्त्री को चाहा था कभी सफलता मिली थी, कभी जगत में झंडा फहराया था, लौट-लौट कर देखते रहते हैं। अब सिवा दुर्गंध के और कुछ भी नहीं है। अब सिवा याददाश्त के और स्मृतियों के अतिरिक्त अतीत का कोई अस्तित्व नहीं है। जिस व्यक्ति में थोड़ी भी बुद्धिमत्ता है, वह तत्क्षण अतीत से अपना संबंध तोड़ लेगा। क्योंकि इस कचरे को क्यों ढोना? और एक मजे की बात, जो अतीत से संबंध तोड़ लेता है, तत्क्षण उसका भविष्य से संबंध टूट जाता है। क्यों? क्योंकि भविष्य कुछ और नहीं है, अतीत को फिर से जीने का, अच्छे ढंग से और परिमार्जित ढंग से जीने की आकांक्षा है। भविष्य क्या है, कल तुम क्या चाहते हो? कल तुम वही चाहते हो जो तुम्हें कल अनुभव हुआ था और प्यारा लगा था। अब और-और चाहते हो। कल जो तुम्हें अनुभव हुआ था, उसमें शायद थोड़े-थोडे कांटे भी थे। अब तुम कल ऐसा चाहते हो कि वे कांटे भी न हों, बस फूल ही फूल रह जाएं। शायद थोड़ी पीड़ाएं भी थी, वे पीडाएं भी तुम नकार कर देना चाहते हो-शुद्ध सुख बच जाए जल, दुख से मुक्त सुख बच जाए कल। तुम्हारा भविष्य क्या है? तुम्हारा भविष्य अतीत का ही सुधारा हुआ रूप हैजिस दिन अतीत गिरता है. उसी दिन अतीत का प्रक्षेपण भविष्य गिर जाता है। और भविष्य और अतीत दोनों गिर जाएं तो तुम इसी क्षण में आबद्ध हो जाओगे, इसी क्षण में ठहर जाओगे। उस ठहरने का नाम विराम है. विश्राम है। और उसी ठहरने में, इसी विराम में राम से पहले मिलन है। ठहरने में, जब तम्हारे भीतर सब ठहर जाता है, कोई तरंगें विचार की नहीं, कोई वासना की तरंगें नहीं न कोई अतीत है, न कोई भविष्य है न पीछे लौट कर देखते हो, न आगे दौड़ रहे हो यहां और अभी बस कीचड़ गयीवर्तमान में जो ठहर गया, उसका अंतर शुद्ध हो जाता है।