मीरा का प्रेम राधा के प्रेम से बड़ा

मीरा का प्रेम राधा के प्रेम से भी बडा है। होना भी चाहिए। अगर राधा प्रसन्न थी कष्ण को सामने पाकर, तो यह तो कोई बड़ी बात न थी। लेकिन मीरा ने पांच हजार साल बाद भी सामने पाया, यह बड़ी बात थी। जिन गोपियों ने कृष्ण को मौजूदगी में पाया और प्रेम किया। प्रम करने योग्य थे वे, उनकी तरफ प्रेम सहज ही बह जाता, वैसा उत्सवपूर्ण व्यक्तित्व पृथ्वी पर मुश्किल से होता है तो कोई भी प्रेम में पड़ जाता। लेकिन कृष्ण गोकुल छोडकर चले गए द्वारका तो बिलखने लगीं गोपियां, रोने लगा, पीड़ित होने लगीं। गोकल और द्वारका के बीच का फासला भी वह प्रेम पूरा न कर पाया। वह फासला बहुत बड़ा न था। स्थान की ही दूरी थी. समय की तो कम से कम दरी न थी। मीरा को स्थान की भी दरी थी, समय की भी दरी थी पर उसने दोनों का उल्लंघन कर लिया, वह दोनों के पार हो गयी। प्रेम के हिसाब में मीरा बेजोड़ हैएक क्षण उसे शक न आया.एक क्षण उसे संदेह न हुआ, एक क्षण को उसने ऐसा व्यवहार नकिया कि कृष्ण पता नहीं, हों या न हों। वैसी आस्था, वैसी अनन्य श्रद्धाफिर समय की कोई दूरी-दूरी नहींरह जाती। दूरी रही ही नहीं। प्रेमी अंतराल को मिटा देता है। प्रेम कीतीव्रता पर निर्भर करता है। मीरा के लिए कृष्ण समसामयिक थे। किसी आर का न दिखाया पड़त हा, मारा। को दिखायी पड़ते थे। किसी और को समझ में न आते हों, मीरा उनके सामने ही नाच रही थी। मीरा उनकी भाव- भंगिमा पर नाच रही थीमीरा को उनका इशारा-इशारा साफ था। यह थोड़ा हमें जटिल मालूम पड़ेगा, क्योंकि हमारा भरोसा शरीर में है।