रोना व दुखी होना तुम्हारा अपना चनाव है

यही तुम्हारा जीवन है। कोई है नहीं। हंसो तो तुम हंस रहे हो, रोओ तो तुम रो रहे हो। जिम्मेवार कोई भी नहीं। यह हो सकता है कि बहुत दिन रोने से तुम्हारी रोने की आदत बन गयी हो और तुम हंसना भूल गये हो। यह भी हो सकता है कि तुम इतने रोये हो कि तुमसे अब कुछ और करते बनता नहीं अभ्यास हो गया। यह भी हो सकता है कि तुम रहे हो कि तुम्हें याद ही नहीं कि कभी यह मैने चुना थाकृरोनालेकिन तुम्हारे भूलने से सत्य असत्य नहीं होता है। तुमने ही चुना है। तुम ही मालिक हो। और, इसलिए जिस क्षण तुम तय करोगे, उसी क्षण रोना रुक जाएगा। इस बोध से भरने का नाम ही कि मैं ही मालिक हूं, मैं ही सृष्टाहूं, जो भी मैं कर रहा हूं उसके लिए मै ही जिम्मेवार हूं, जीवन में क्रांति हो जाती है। जब तक तुम दूसरे को जिम्मेवार समझोगे, तब तक क्रांति असंभव हैय क्योंकि तब तक तुम निर्भर रहोगे। तुम सोचते हो कि दूसरे तुम्हें दुखी कर रहे हैं, तो फिर तुम कैसे सुखी हो सकोगे? असंभव है क्योंकि दूसरों को बदलना तुम्हारे हाथ में नहीं। तुम्हारे हाथ में तो केवल स्वयं को बदलना है। अगर तम सोचते हो कि भाग्य के कारण तुम दुखी हो रहे हो तो फिर तुम्हारे हाथ के बाहर हो गयी बात। भाग्य को तम कैसे बदलोगे? भाग्य तुमसे ऊपर है। और, तुम अगर सोचते हो कि तुम्हारी विधि में ही विधाता ने लिख दिया है जो हो रहा है,तो तुम एक परतंत्र यंत्र हो जाओगे तो तुम आत्मवान न रहोगे। आत्मा का अर्थ ही यह है कि तुम स्वतंत्र हो और, चाहे कितनी ही पीड़ा तुम भोग रहे हो, तुम्हारे ही निर्णय का फल है। और, जिस दिन तुम निर्णय बदलोगे, उसी दिन जीवन बदल जाएगा। फिर, जीवन को देखने के ढंग पर सब कुछ निर्भर करता है।