‘ओशोवाणी’

बडे अदब से सर झुका लिया हमने तेरी पनाह में आकर अब तु इसे सजदा समझ, या साजिश, तेरी मर्जी! एक बार सब छोड़ दो उस अज्ञात के चरणों में अपने अहंकार को, बस अपने कर्ताभाव को। कह दो उससे तेरी जो मर्जी! जैसा नचाएगा नाचेंगे! जो कराएगा करेंगे! हम करने वाले नहीं, हम सिर्फ अभिनेता हैं।
तू जो निर्णय लेगा, जो पात्र बनने की आज्ञा देगा वही बन जाएंगे। न हमारा कोई निर्णय है, न हमारी अपनी कोई नियति है। तेरे हाथों में सब है। इतना समर्पण जो कर सके वह पूर्ण शून्य हो जाता है। और जब तुम पूर्ण शून्य हो जाते हो,तो तुम्हारा शून्य, तुम्हारा शून्य ही उस पूर्ण के लिए निमंत्रण है। वह पूर्ण तत्क्षण उतर आता है- नाचता, गुनगुनाता, महोत्सव लिए।