कोपलें फिर फूट आईं

कोपलें फिर फूट आईं


जब मैं कहता हूं घड़ी आधा धड़ी को आंख बंद करके बैठ जाओ तो तुम से मैं यह कह रहा हूं कि घड़ी आध घड़ी को, दूसरों को भूल जाओ। चौबीस घंटे पड़े हैं। तेईस घंटे सारे संसार को दे दो, बाजार को दे दो, दुकान को दे दो, मकान को दे दो जिसको देना हो, उसको दे दो।
लेकिन क्या तुम इतने भी अधिकारी नहीं हो कि एक घंटा अपने लिए बचा लो? शायद चौबीस घंटा बचाना बहुत मुश्किल होगा। एक घंटा बचाना आसान हो सकता है।
 और फिर मैं तुमसे यह भी नहीं कहता कि इस घंटे को बचाने के लिए तुम हिमालय की किसी गुफा में बैठो। तुम्हारा घर पर्याप्त है, और को सबसे ज्यादा आसान जगह है। क्योंकि वहां जो भी है, उससे तुम परिचित हो। और एक घंटे के लिए उस सबको भूल जाना कठिन नहीं है।
आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, जल्दी ही वह घड़ी आ जाती है कि तुम चुपचाप बैठे ही रहते हो। मूर्तियां आएगी, मत रस लेना उनमें। न पक्ष में न निपक्ष में। आने देना और जाने देना। रास्ता है, मन की राह है, चलती है। तुम राह के किनारे बैठे देखते रहना। 
और तुम चकित होओगे, इस जीवन के सबसे बड़े रहस्य से चकित होओगे कि अगर तुम साक्षीभाव सिर्फ साक्षीभाव से जैसे तुम्हें कुछ लेना-देना नहीं कौन जा रहा है, कौन आ रहा है। तुम गुमसुम चुपचाप सड़क के किनारे बैठे ही रहना। जल्दी ही वह घड़ी आ जाएगी कि यह रास्ते की भीड़ कम होने लगेगी, क्योंकि इस भीड़ के रास्ते पर होने का कारण है। तुमने इसे निमंत्रण दिया है।
 तुमने अब तक उसका स्वागत किया है। यह बिन बुलायी नहीं है। और जब यह देखेगी, कि तुम उपेक्षा से भर गए हो, कि तुम लौटकर भी नहीं देखते कौन आया, कौन गया, अच्छा था कि बुरा, सुंदर था कि असुंदर, अपना था कि पराया यह भीड़ धीरे-धीरे विदा होने लगेगी।
ध्यान की प्रक्रिया बड़ी सरल है। थोड़ी सी धैर्य की क्षमता चाहिए। और खोने को क्या है अगर कुछ न भी मिला तो घंटे भर आराम ही हो लेगा। लेकिन मैं जानता हूं अपने अनुभव से और उन हजारों लोगों के अनुभव से, जिनको मैंने इस प्रक्रिया से गुजारा है। एक दिन वह घड़ी आ जाती है, वह महाघड़ी आ जाती है कि मन का रास्ता खाली हो जाता है, धूल भी नहीं उड़ती, जानने को कुछ भी शेष नहीं रह जाता। और जब जानने को कुछ भी शेष नहीं रह जाता, तब सिर्फ जानने वाले शेष रह जाता है।
 और उस जानने वाले को अब कोई उपाय नहीं है किसी और को जानने का, सिवाय अपने का जानने के। जानना उसका स्वभाव है। अगर तुम कुछ खिलौना उसे हाथ में दे देते हो, कोई झुनझुना हाथ में दे देते हो, वह उसी को जानता रहता है। अब आज कुछ भी नहीं है। आज वह अपने को ही जानता है। और एक बार भी किसी ने अपना स्वाद ले लिया तो उसने अमृत का स्वाद ले लिया। फिर न कोई अंधेरा है, फिर न कोई अचेतना है।
और वह एक घड़ी धीरे-धीरे चैबीस घड़ियों पर फैल जाएगी। रहोगे फिर भी तुम बाजार में, रहोगे फिर भी तुम घर में। वही होगी पत्नी, वही होंगे बच्चे, लेकिन तुम वही नहीं होओगे। तुम्हारे जीवन में एक क्रांति घटित हो जाएगी। तुम्हारे देखने के सारे परिप्रेक्ष्य, तुम्हारी आंखें बदल जाएगी। 
एक शांति और ऐसी शांति, कोई जिसकी गहराई कभी नाप नहीं सका। और एक प्रकाश और एक ऐसा प्रकाश, जिसमें न तो


कोई तेल है, न कोई बाती है बिन बाती बिन तेल।
इसलिए उसके चुकने का कोई सवाल नहीं है।