प्रेम

प्रेम को उपलब्ध होना है तो मस्तिष्क से सारी चेतना हृदय


की तरफ प्रवाहित होनी चाहिए यह बड़ी क्रांति है, रूपांतरण है


यह कोई छोटा काम नहीं है। यह बड़े से बड़ा काम है जो आदमी जीवन में कर सकता है। यह बड़ी से बड़ी चुनौती है। चेतना मस्तिष्क में जाकर अटक गई है। क्योंकि तुम्हारा सारा शिक्षण,  तुम्हारा स्कूल, तुम्हारे विद्यालय, तुम्हारा समाज, संस्कृति, सभ्यता, सबका एक ही आग्रह है कि चेतना को मस्तिष्क में ले जाओ। तो गणित सिखाओ, एक प्रेम भर नहीं सिखाया जाता। एक प्रेम की झलक भर मत उतारने देना। प्रेम को तो बिलकुल काट ही दो। आदमी को ऐसे हमने गुजारना सिखाया है कि हृदय से बच कर निकल जाता है। हृदय रास्ते पर आता ही नहीं। हमें हृदय का मार्ग ही भूल गया है। 


हृदय तक लाने का उपाय क्या है?


ध्यान की कुदाली से काट डालने होंगे विचार के सारे तंतु। ध्यान की तलवार से विचार की सारी की सारी जड़ें काट डालनी होगी, ताकि चेतना मस्तिष्क से मुक्त हो जाए। और मस्तिष्क से मुक्त हो तो तत्क्षण हृदय में प्रवेश हो जाती है। 
प्रेम ध्यान की परिणति है। और आज का मनुष्य तो बिना ध्यान के प्रेम की तरफ नहीं जा सकता।