ओशोवाणी

बहुत मिले सो संग नहीं, न्यारी न्यारी भाँति।
जुगल प्रेम रस मगन जे, तेई अपनी पाँति।।


संसार में अपनी उपासना से भिन्न प्रकार के उपासक ही अधिक मिलते है,किन्तु उनका संग करना उचित नहीं है। अपनी जाति के तो वे ही उपासक है जो युगल श्रीश्यामाश्याम के प्रेम-रस में निमग्न हैं जिनका मन श्रीश्यामश्याम के अलावा कहीं और लगता ही नही।।


श्रीश्यामा श्याम की लीला को छोड़कर और कोई बात करते ही नही।
जो श्रीश्यामाश्याम के ही रस की चर्चा करते हैं वही अपने संगी हैं।।