दसम द्वारा अगम अपारा परमपुरुष की घाटी...संत कबीर

दसम द्वारा अगम अपारा परमपुरुष की घाटी...संत कबीर


मनुष्य भी एक बीज है। और जब तक उसमें सहस्रदल कमल का फूल न खिल जाए। जिसको योगी कहते सहस्रदल कमल, जिसको बुद्ध ने कहा निर्वाण, जिसको महावीर ने कहा कैवल्य जिसको कबीर कहते हैं सुरति या दशम द्वार। दसवां द्वार न खुल जाए...मनुष्य की देह में नौ द्वार खुले हुए हैं, एक द्वार बंद है। नौ द्वार यानी नौ छेद। जननेंद्रिय से लेकर आंखों तक गिनती कर लेना, नौ छेद हैं इनसे तुम जगत से जुड़े हो। 
आंख से तुम जुड़े हो प्रकाश से। 
कान से तुम जुड़े हो ध्वनि से। 
नाक से तुम जुड़े हो गंध से। 
मूँह से तुम जुड़े हो स्वाद से।


ये नौ द्वार तुम्हें जगत से जोड़े हुए हैं। यही तुम्हारा लेन-देन है, व्यवसाय है जगत से, व्यापार है। एक दसवां द्वार भी है..सहस्रार। तुम्हारे मस्तिष्क में सबसे ऊंचाई पर वह बंद पड़ा है। वह तब तक बंद रहेगा जब तक तुम जागोगे नहीं। जब तक ध्यान की गरिमा गहनतम न होगी जब तक ध्यान की त्वरा न होगी, जब तक ध्यान एक जलती हुई अग्नि न बन जाए, तब तक दसवां द्वार नहीं खुलेगा। 
जैसे ही ध्यान की अग्नि प्रज्वलित होगी, झटके से दसवां द्वार खुल जाता है। कबीर कहते हैं खुली किबरिया! और जैसे ही दसवां द्वार खुलता है, जैसे नाक के बिना गंध नहीं, आंख के बिना रंग नहीं..ऐसे ही दसवें द्वार के बिना परमात्मा नहीं। दसवें द्वार से परमात्मा का अनभुव होता है। दसवें द्वार की प्रतीति परमात्मा है। जैसे ही दसवां द्वार खुला अचानक, फिर किसी प्रमाण की कोई जरूरत नहीं रह जाती। तुम जानते हो तुम परमात्मा हो और तुम जानते हो शेष सब भी परमात्मा है।