ओशो

मैंने सुना है एक सम्राट ने अपने एक मित्र को मेहमान की तरह बुलाया हुआ था और वे शिकार के लिए गए। तो मित्र को सताने के लिए, मित्र एक ज्ञानी था, उसको सताने के लिए। शिकार पर जब गए तो उसे सबसे रद्दी घोड़ा जो इतना धीमा चलता था कि कभी शिकार तक पहुंचना ही मुश्किल था, उसको पकड़ा दिया। गए शिकार को, तो सब तो शिकार के जंगल में पहुंच गए। वह मित्र अभी गांव के बाहर ही नहीं निकल पाए थे। घोड़ा ऐसा चलता था कि अगर बिना घोड़े के होते तो ज्यादा चल जाते। कई दफे ऐसा होता है कि साधन बाधा बन जाते हैं। लेकिन भाग्य की बात, पानी गिरा जोर से। तो मित्र गांव के बाहर से ही वापस लौट आया। उसने अपने सारे कपड़े निकाल कर अपने नीचे रख लिए और घोड? के ऊपर बैठ गया। जब वह घर पहुंचा उसने कपड़े पहन लिए। राजा और बाकी साथी जंगल तक पहुंच गए थे। वे भागे हुए आए। बिल्कुल तर-बतर हो गए। देखा कि मित्र तो साफ कपड़े पहने हुए है। जरा भी भीगा नहीं। उन्होंने पूछा, क्या मामला है? उस मित्र ने कहा, यह घोड़ा बड़ा अदभुत है ये इस तरकीब से ले आया कि कपड़े भीग न पाए। दूसरे दिन फिर शिकार को निकले। राजा ने कहा, आज मैं इस घोड़े पर बैठूंगा।
मित्र ने कहा, आपकी मर्जी। मित्र को तेज घोड़ा दे दिया राजा ने और राजा उस घोड़े पर बैठा। फिर पानी गिरा। मित्र ने फिर कपड़े निकाल कर घोड़े की पीठ पर रख कर, उसके ऊपर बैठ गया और तेजी से घर आया। कल से भी कम भीगा, क्योंकि आज तेज घोड़ा था। राजा कल से भी ज्यादा भीग गया। क्योंकि वह घोड़ा तो बिल्कुल चलता ही नहीं था। सारी वर्षा उसके ऊपर गुजरी। घर आकर उसने कहा कि तुमने झूठ बोला, यह घोड़ा तो हमें और भीगा दिया। मित्र ने कहा, महाराज अकेला घोड़ा काफी नहीं होता, यू हैव टू कंट्रिब्यूट समथिंग। आपको भी कुछ, आपको भी कुछ करना पड़ता है। घोड़ा अकेला क्या करेगा? कुछ आपने भी किया था कि सिर्फ घोड़े पर निर्भर रहे थे। उन्होंने कहा, मैं तो सिर्फ घोड़े पर बैठा रहा, यह तो सब गड़बड़ हो गई। कुछ हम भी किए थे, तो घोड़े ने भी साथ दे दिया था। आज भी हम किए हैं, घोड़े ने साथ दे दिया। राजा पूछने लगा, तूने क्या किया था। उसने कहा कि वह मत पूछो। वह पूछो ही मत। वही तो राज है। लेकिन एक बात तय है, उस आदमी ने कहा कि हमेशा कुछ आपको भी करना पड़ता है। और अगर आप कुछ नहीं करते हैं, तो तेज घोड़ा भी व्यर्थ है। अगर आप कुछ करते हैं, तो शिथिल से शिथिल चलने वाला घोड़ा भी सहयोगी और मित्र हो सकता है। मैंने एक बात कह दी वह एक घोड़े से ज्यादा नहीं हो सकती। आप कुछ करते हैं, तो कुछ बात होगी। अन्यथा बात आप सुनेंगे, खो जाएगी। तो आप सोच कर रात आएं। न करने की बात को समझ कर आएं कि क्या है न करना। और फिर रात हम बैठेंगे, अगर सोच कर आप आए तो न करने में उतरना हो सकता है। अभी इसी वक्त हो सकता है। कभी भी हो सकता है। लेकिन एक तैयारी विचार की पीछे हो तो आदमी एक क्षण में छलांग लगा जाता है। और वह छलांग इतनी अदभुत है, वहां पहुंचा देती है जहां हम सदा से हैं। वह छलांग वहां पहुंचा देती है, जहां हम सदा से हैं। रात उस छलांग के लिए फिर मिलेंगे। मेरी बातों को इतनी शांति और प्रेम से सुना, उससे अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें।