प्रभू का मंदिर

प्रभू मंदिर का तीसरा द्वार है मुदिता अर्थात अहोभाव


प्रभु के मंदिर पर तीसरे द्वार पर आज बात करनी है। वह तीसरा द्वार है उन दो द्वारों को करुणा को, मैत्री को जिन्होंने समझा, वे इस तीसरे द्वार को भी सहज ही समझ लेंगे। तीसरा द्वार है मुदिता। मुदिता का अर्थ है. प्रफुल्लता, आनंदभाव, अहोभाव, चियरफुलनेस। आषाढ़ में बादल घिरते हैं। उनमें भरा हुआ जल करुणा है। फिर वह जल बरस पड़ता है प्यासी पृथ्वी पर। वह बरसा हुआ जल मैत्री है। और फिर उस बरसे हुए जल से जो तृप्ति हो जाती है पृथ्वी के प्राणों में, और सारी पृथ्वी हरियाली से भर जाती है, खुशी से और आनंद से और नाच उठती है। वह हरियाली, वह प्रफुल्लता, वह खिल गए फूल, वह पहाड़ पहाड़, गांव गांव, पृथ्वी का कोना कोना जिस खुशी को जाहिर करने लगता है, वह मुदिता है, वह प्रफुल्लता है, वह चियरफुलनेस है। वह अहोभाव है। जो करुणा और मैत्री से गुजरते हैं, वे अनिवार्यत तीसरे द्वार के समक्ष खड़े हो जाते हैं। उनके जीवन की सारी उदासी तिरोहित हो जाती है। उनके जीवन की सारी पीड़ा, सारा दुख, सारा बोझ समाप्त हो जाता है। वे निर्भार, वे मुक्त, वे आनंद की एक नई ध्वनि से अनुप्रेरित हो उठते हैं। तीसरे द्वार पर खड़े हो जाना ही प्रफुल्ल हो जाना है, लेकिन उसमें प्रवेश तो अनंत आनंद में ले जाता है।
वह प्रवेश कैसे होगा? उस प्रवेश के क्या अर्थ हैं, उस सबको समझ लेना जरूरी है। और स्मरण रहे कि जो परमात्मा के द्वार पर हंसते हुए नहीं पहुंचते हैं वे कभी भी परमात्मा के द्वार पर नहीं पहुंचते हैं। उदास आत्माएं, थके और हारे हुए मन, दुख, पीड़ा और विषाद से घिरे हुए चित्त नहीं, इतने अंधकार से भरी हुई आत्माओं के लिए परमात्मा का द्वार नहीं है।