परमात्मा

परमात्मा कहाँ नहीं है


नानक सो गए थे, मक्का के पवित्र पत्थर की तरफ पैर करके, पुजारी नाराज हुए थे। कहा, “हटाओ पैर यहां से। कहीं और पैर करो। इतनी भी समझ नहीं है साधु होकर? तो नानक ने कहा, “तुम हमारे पैर वहां कर दो जहां परमात्मा न हो“ कहानी कहती है कि पुजारियों ने उनके पैर सब दिशाओं में किए, जहां भी पैर किए, काबा का पत्थर वहीं हटकर पहुंच गया। कहानी सच हो न हो, पर कहानी में बड़ा सार है। “जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर, या वोह जगह बता जहां पर खुदा न हो” सार इतना ही है कि पुजारी ऐसी कोई जगह न बता सके जहां परमात्मा न हो। तुम्हारा जीवन ऐसा भर जाए उससे कि ऐसी कोई जगह न बचे जहां वह न हो! 
इसलिए बुरे-भले का हिसाब मत रखना। अच्छा-अच्छा उसे मत दिखाना, अपना बुरा भी उसके लिए खोल देना। तुम्हारे क्रोध में भी उसकी ही याद हो। और तुम्हारे प्रेम में भी उसकी ही याद हो। और तुम सब हैरान होओगे कि तुम्हारा क्रोध-क्रोध न रहा, तुम्हारे क्रोध में भी उसकी सुगंध आ गई और तुम्हारा प्रेम तुम्हारा प्रेम न रहा, तुम्हारे प्रेम में भी उसकी ही प्रार्थना बरसने लगी। तुम जिस चीज से परमात्मा को जोड़ दोगे, वही रूपांतरित हो जाती है। तुम अपना सब जोड़ दो, तुम्हारा सब रूपांतरित हो जाएगा।